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परमेश्वर धर्मी का शरणस्थान
१ हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले परमेश्वर,
हे पलटा लेनेवाले परमेश्वर, अपना तेज दिखा! (व्य. 32:35)
२ हे पृथ्वी के न्यायी, उठ;
और घमण्डियों को बदला दे!
३ हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक,
दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे?
४ वे बकते और ढिठाई की बातें बोलते हैं,
सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं।
५ हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं,
वे तेरे निज भाग को दुःख देते हैं।
६ वे विधवा और परदेशी का घात करते,
और अनाथों को मार डालते हैं;
७ और कहते हैं, “यहोवा न देखेगा,
याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।”
८ तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो;
और हे मूर्खों तुम कब बुद्धिमान बनोगे*?
९ जिसने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता?
जिसने आँख रची, क्या वह आप नहीं देखता?
१० जो जाति-जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है,
क्या वह न सुधारेगा?
११ यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं। (1 कुरि. 3:20)
१२ हे यहोवा, क्या ही धन्य है वह पुरुष जिसको तू ताड़ना देता है,
और अपनी व्यवस्था सिखाता है,
१३ क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनों में उस समय तक चैन देता रहता है,
जब तक दुष्टों के लिये गड्ढा नहीं खोदा जाता*।
१४ क्योंकि यहोवा अपनी प्रजा को न तजेगा,
वह अपने निज भाग को न छोड़ेगा; (रोमि. 11:1,2)
१५ परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा,
और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे-पीछे हो लेंगे।
१६ कुकर्मियों के विरुद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा?
मेरी ओर से अनर्थकारियों का कौन सामना करेगा?
१७ यदि यहोवा मेरा सहायक न होता,
तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता।
१८ जब मैंने कहा, “मेरा पाँव फिसलने लगा है*,”
तब हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया।
१९ जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएँ होती हैं,
तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। (2 कुरि. 1:5)
२० क्या तेरे और दुष्टों के सिंहासन के बीच संधि होगी,
जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं?
२१ वे धर्मी का प्राण लेने को दल बाँधते हैं,
और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं।
२२ परन्तु यहोवा मेरा गढ़,
और मेरा परमेश्वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है।
२३ उसने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है,
और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सत्यानाश करेगा।
हमारा परमेश्वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा।