शाश्वत जीवन प्राप्त हुआ?
प्रश्न: शाश्वत जीवन प्राप्त हुआ?
उत्तर: बाइबल शाश्वत जीवन की ओर का एक स्पष्ट पथ दिखाती है । पहले हमें यह जान लेना चाहिये कि हमने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है: "इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है" (रोमियो ३:२३) । हम सबने ऐसे कार्य किये हैं जो परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं जो हमें दंडित होने योग्य बनाते हैं । क्योंकि हमारे सारे पाप आखिरकार एक सनातन परमेश्वर के विरुद्ध है, केवल एक शाश्वत दंड ही पर्याप्त हैं । "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में शाश्वत जीवन है" (रोमियो ६:२३)
हालाँकि, यीशु मसीह, जो पाप रहित था (१पतरस २:२२) परमेश्वर का शाश्वत पुत्र एक इन्सान बना (यूहन्ना १:१; १४) तथा हमारा कर्ज चुकाने के लिये मरा । "परमेश्वर हमपर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रकट करता है, कि जब हम पापी ही थे, तभी मसीह हमारे लिये मरा" (रोमियो ५:८) । यीशु मसीह सलीब पर मरा (यूहन्ना १९:३१-४२), वह दण्ड उठाते हुए जिसके उत्तराधिकारी हम थे (२कुरिन्थियों ५:२१) । तीन दिन पश्चात वो मरे हुओं में से जी उठा (१कुरिन्थियों १५:१-४) पाप तथा मृत्यु के ऊपर अपनी विजय को प्रमाणित करते हुए । "जिसने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया" (१पतरस १:३)
विश्वास के द्वारा, हमें अपने पाप से दूर होना चाहिये, तथा मुक्ति के लिये यीशु की ओर मुड़ना चाहिये (प्रेरितों के काम ३:१९) । अगर हम उसमें अपना विश्वास रखते हैं, हमारे पापों का कर्ज चुकाने के लिए तथा उसकी सलीब पर मृत्यु पर विश्वास करते हुए, हम क्षमा किये जायेगें तथा स्वर्ग में शाश्वत जीवन का वचन हमें मिलेगा । "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा, कि उस ने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, वह नाश न है, शाश्वत जीवन पायें "(यूहन्ना ३:१६) ।" यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करें और अपने मन से विश्वास करें, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पायेगा (रोमियो १०:९) ।
सलीब पर यीशु के समाप्त किये गए कार्य पर विश्वास ही केवल शाश्वत जीवन का सच्चा मार्ग है ! "क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं वरन् परमेश्वर का दान है, और ना कमजोरी के कारण, ऐसा ना हो कि कोई घमण्ड करे" (इफिसियो २:८-९)
अगर आप यीशु मसीह को अपने मुक्तिदाता के रूप में ग्रहण करना चाहते हैं, यहाँ पर एक उदाहरणस्वरूप प्रार्थना है । स्मरण रखें, यह प्रार्थना या कोई और प्रार्थना का कहना आपको मुक्ति नहीं दिला सकता । केवल यीशु में विश्वास ही है जो कि आप को पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थना तो केवल परमेश्वर में अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिये मुक्ति उपलब्ध कराने के लिए उसको धन्यवाद करने के लिए है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दण्ड उठाया जिसके योग्य मैं था जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा मुक्ति के लिये आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए-शाश्वत जीवन उपहार के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!"
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शाश्वत जीवन प्राप्त हुआ?
एक मसीही क्या है?
प्रश्न: एक मसीही क्या है?
उत्तर: वेबस्टर का शब्दकोष एक मसीही को इस रूप में परिभाषित करती है, "एक व्यक्ति जो यीशु पर मसीह के रूप में या यीशु की शिक्षा पर आधारित धर्म में विश्वास करने का दावा करता है ।" यद्यपि, यह समझने के लिए कि एक मसीही क्या है यह एक अच्छा आरंभिक बिन्दु है, कई धर्मनिरपेक्ष परिभाषाओं की तरह, परन्तु यह उस बाइबिली सत्य को वास्तविक रूप से शार्टकट करने में थोड़ा छोटा पड़ जाता है कि मसीही होने का अर्थ क्या है ।
नए नियम में "मसीही" शब्द तीन बार प्रयोग में लाया गया है (प्रेरितों के काम ११:२६; प्रेरितों के काम २६:२८;१ पतरस ४:१६) । यीशु मसीह के अनुयायी सबसे पहले अर्न्तक्रिया में मसीही कहलाये गए (प्रेरितों के काम ११:२६) क्योंकि उनका आचरण, क्रिया-कलाप, तथा भाषा मसीह जैसी थी । यह मूलरूप से तिरस्कारपूर्ण चिढ़ के रूप में मसीहियों का मज़ाक उड़ाने के प्रयोग में अंताकिय के विधर्मियों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था । शाब्दिक रूप में इसका अर्थ है "मसीही के दल के सदस्य" या "मसीह के समर्थक या अनुयायी, "जिसकी उस तरीके से बहुत समानता है जैसा कि वेबस्टर के शब्दकोष में परिभाषित किया गया है । दुर्भाग्य से समय के साथ "मसीही" शब्द ने अपनी महत्ता काफी हद तक खो दी है तथा अब अकसर उस व्यक्ति के लिये प्रयोग किया जाता है जो धार्मिक हो या जिसके ऊँचे नैतिक मूल्य हों ना कि यीशु मसीह के सच्चे पुनः जन्में हुए अनुयायी के लिए । कई लोग जो यीशु मसीह पर विश्वास तथा भरोसा नहीं करते हैं, अपने आपको केवल इसलिए मसीही मानते हैं क्योंकि वो गिरजाघर जाते हैं या वो एक "मसीही" देश में रहते हैं । परन्तु गिरजाघर जाना, अपने से कम भाग्यशाली लोगों की सेवा करना, या एक अच्छा इन्सान बनना आपको मसीही नहीं बना देता । जैसा कि एक सुसमाचार-प्रचारक ने एक बार कहा था, "गिरजाघर जाना किसी को मसीही नहीं बनाता जैसा कि एक गैराज़ में जाकर व्यक्ति मोटरकार नहीं बन जाता ।" एक चर्च के सदस्य होकर, नियमित रूप से सभाओं में सम्मिलित रहकर तथा चर्च के सदस्य होकर, नियमित रूप से सभाओं में सम्मिलित रहकर तथा चर्च के कामों के लिये चंदा देना आपको मसीही नहीं बना सकता ।
बाइबल हमें शिक्षा देती है कि हमारे अच्छे कार्य हमें परमेश्वर के समक्ष स्वीकार्य नहीं बना सकते । (तीतुस ३:५) हमें बताता है कि, "यह धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने आप किये, पर अपनी दया के अनुसार, नए जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा के हमें नया बनाने के द्वारा हुआ ।" इसलिये, एक मसीही वो ही है जो परमेश्वर द्वारा नया जन्मा गया (यूहन्ना ३:३; यूहन्ना ३:७; १पतरस ३:२३) तथा जिसने यीशु मसीह में अपना विश्वास और भरोसा रखा है । (इफिसियो २:८) हमें बताता है कि, "क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है ।" एक सच्चा मसीही वो है जिसने अपने पाप का पश्चाताप किया तथा केवल यीशु मसीह में अपना विश्वास तथा भरोसा रखा है । उनका भरोसा किसी धर्म का या नैतिक आचार संहिताओं, या करने या ना करने की सूचियों का पालन करने का नहीं है ।
एक सच्चा मसीही वो व्यक्ति है जिसने अपना विश्वास तथा भरोसा यीशु मसीह के व्यक्तित्व में रखा है तथा उस स्थिति में कि वह पापों की कीमत चुकाने के लिए क्रूस पर मरा तथा मृत्यु के ऊपर विजय पाने तथा उन सब को, जो उसके ऊपर विश्वास करते है, अनन्त जीवन देने के लिए, तीसरे दिन फिर से जी उठा । (यूहन्ना १:१२) हमें बताता है, "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं ।" एक सच्चा मसीही निश्चय ही परमेश्वर की संतान है, परमेश्वर के वास्तविक परिवार का सदस्य, तथा वो जिसे यीशु में नया जीवन दिया गया है । दूसरों के प्रति प्रेम तथा परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञाकारिता एक सच्चे मसीही की पहचान है (१यूहन्ना २:४; १यूहन्ना २:१०) ।
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एक मसीही क्या है?
नए क्रिश्चियन के पुर्नजन्म का क्या अर्थ हैं?
प्रश्न: नए क्रिश्चियन के पुर्नजन्म का क्या अर्थ हैं?
उत्तर: क्रिश्चियन पुर्नजन्म का क्या अर्थ हैं? बाइबल में यूहन्ना ३:१-२१ एक आदर्श अनुच्छेद है जो इस प्रश्न का उत्तर देता है । प्रभु यीशु मसीह नीकुदेमुस नाम के एक प्रमुख फारसी से जो कि यहूदियों के शासक की एक संस्था का सदस्य भी था, की बात करता है । निकुदेमुस रात के समय यीशु के पास आया था । निकुदेमुस के पास यीशु से पूछने के लिए प्रश्न थे ।
जब यीशु निकुदेमुस से बातें कर रहा था, उसने कहा "…मैं तुझसे सच कहता हूँ, यदि कोई नए सिरे से ना जन्मे तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता ।" निकुदेमुस ने उस से कहा, "मनुष्य जब बूढा हो गया तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है? यीशु ने उत्तर दिया, "मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से ना जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता । क्योंकि जो शरीर से जन्मा है वो शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वो आत्मा है । अचम्भा ना कर, कि मैंने तुझ से कहा, कि तुम्हें फिर से जन्म लेना है …" (यूहन्ना ३:३-७)
इस उक्ति "नए सिरे से जन्म लेना" का अक्षरश : अर्थ है "स्वर्ग से जन्मा ।" निकुदेमुस के साथ एक वास्तविक समस्या थी । उसको अपने हृदय को परिवर्तित करने की आवश्यकता थी-आत्मिक रूपातंरण की । नया जन्म, नए सिरे से जन्म लेना, परमेश्वर का एक कार्य है जहाँ उस व्यक्ति को अनन्त जीवन प्रदान किया जाता है जो विश्वास रखता है (२कुरिन्थियों ५:१७; तीतुस ३:५; १पतरस १:३; १यूहन्ना २:२९; ३:९; ४:७; ५:१-४, १८) १यूहन्ना १:१२, १३ यह संकेत देता है फिर से जन्म लेने का तात्पर्य क्राइस्ट के नाम में विश्वास के माध्यम से ईश्वर के सन्तान के रूप में जन्म लेने से है।
तर्कसंगत रूप से एक प्रश्न उठता है, "एक व्यक्ति को नए सिरे से जन्म लेने की क्या आवश्यकता है?" इफिसियों २:१ में प्रेरित पौलुस कहता है, "और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे …" रोम निवासियों के लिए रोमियो ३:२३, में प्रेरित ने लिखा, "इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है ।" इसलिए एक व्यक्ति को नए सिरे से जन्म लेने की आवश्यकता है जिससे कि वो अपने पापों की क्षमा प्राप्त कर सके तथा परमेश्वर के साथ एक संबंध बना सके?
ऐसा कैसे हो सकता है? इफिसियों २:८, ९ व्यक्त करता है, "क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है, और ना कर्मों के कारण, ऐसा ना हो कि कोई घमण्ड करे ।" जब कोई 'मुक्त' किया जाता है, तो वह नए सिरे से जन्म लेता है, आत्मिक रूप से नवीकरण हो कर, तथा अब नए जन्म के अधिकार से परमेश्वर की सन्तान हैं । यीशु पर विश्वास रखना, जिसने पाप के दंड़ की कीमत चुकाई, जब वो क्रूस पर मरा, का ही मतलब है आत्मिक तौर पर फिर से जन्म लेना । "सो, यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्टि है …" (२ कुरिन्थियों ५:१७)
अगर आपने प्रभु यीशु मसीह में अपने मुक्तिदाता के रूप में कभी विश्वास नहीं किया है, तो क्या आप पवित्र आत्मा की आवाज़ पर विचार कर सकेंगे जब वो आपके हृदय से बातें करता है? आपको नए सिरे से जन्म लेने की आवश्यकता हैं । क्या आज आप पश्चाताप की याचना करेंगे तथा यीशु में एक नई सृष्टि बनेगा? "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं । वे ना तो लहू से, ना शरीर की इच्छा से, ना मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं" (यूहन्ना १:१२-१३)
अगर आप यीशु मसीह को अपने मुक्तिदाता के रूप में ग्रहण करने की इच्छा रखते हैं तथा नए सिरे से जन्म लेना चाहते है, यहाँ एक प्रार्थना है । स्मरण रखें, इस प्रार्थना या कोई और प्रार्थना करने से आपको मुक्ति नहीं मिल सकती । केवल मसीह पर विश्वास रखने से ही आपको पाप से मुक्ति मिल सकती है । यह प्रार्थना तो केवल परमेश्वर में अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिये मुक्ति उपलब्ध कराने के लिए उसको धन्यवाद करने के लिए है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंनें आप के विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंड़ित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दंड़ उठाया, जिसके योग्य मैं था, जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा मुक्ति के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिये अनन्त जीवन वरदान के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!
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नए क्रिश्चियन के पुर्नजन्म का क्या अर्थ हैं?
चार अध्यात्मिक नियम क्या है?
प्रश्न: चार अध्यात्मिक नियम क्या है?
उत्तर: चार अध्यात्मिक नियम मुक्ति के संवाद को वितरित करने का तरीका है जो कि यीशु में विश्वास के द्वारा उपलब्ध है । वो सुसमाचार में महत्वपूर्ण जानकारियों को चार बिंदूओं में व्यवस्थ्ति करने का एक सरल तरीका है ।
चार अध्यात्मिक नियमों में से पहला यह है, "परमेश्वर आपसे प्रेम रखता है तथा आपके जीवने के लिये उसके पास अद्भूत योजनाएं है ।" यूहन्ना ३:१६ हमें बताता है, "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करें, वह नाश ना हो, परन्तु अनन्त जीवन पाये ।" यूहन्ना १०:१० हमें यीशु के आने का कारण बताया है, "मैं इसलिये आया कि वे जीवन पायें और बहुतायत से पाएं ।" हमें परमेश्वर के प्रेम से क्या बात रोक रही है? क्या चीज़ हमें अनन्त जीवन पाने से दूर रख रही है?
चार अध्यात्मिक नियमों में से दूसरा है, "मानवता पाप के द्वारा कलंकित है इसिलिए परमेश्वर से पृथक है । परिणामस्वरूप हम अपने जीवन के प्रति परमेश्वर की आश्चर्यजनक योजना को समझ नहीं सकते ।" रोमियो ३:२३ इस जानकारी की अभिपुष्टि करता है, "इसलिये कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है । रोमियों ६:२३ हमें पाप का परिणाम बताता है, "पाप की मज़दूरी मृत्यु है ।" परमेश्वर ने हमारी रचना की ताकि हम उसके साथ सहभागिता रखें । जबकि मानव जाति संसार में पाप लाई, तथा इसलिए वो परमेश्वर से पृथक है । हमने उसके साथ उन संबंधों को बर्बाद कर दिया है जिनकी परमेश्वर ने हमसे अपेक्षा की थी । इसका समाधान क्या है?
चार अध्यात्मिक नियमों में से तीसरा है, "यीशु मसीह ही हमारे पाप के लिए परमेश्वर की ओर से प्रावधान है । यीशु मसीह के द्वारा हम अपने पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते हैं तथा परमेश्वर के साथ ठीक संबंध कायम रख सकते हैं ।" (रोमियो ५:८) हमें बताता है, "परन्तु परमेश्वर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा ।" (१कुरिन्थियों १५:३-४) हमें यह बात बताता है कि मुक्ति पाने के लिये हमें किस बात को जानने तथा विश्वास करने की आवश्यकता है, " …कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिए मर गया । और गाड़ा गया और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा …" यीशु स्वयं इस बात की घोषणा करता है कि मुक्ति का एकमात्र पथ वो ही है, युहन्ना १४:६ में वो कहता है, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ, बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता ।" उद्धार का यह आश्चर्यजनक वरदान मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?
चार अध्यात्मिक नियमों में से चौथा है, "उद्धार का वरदान प्राप्त करने के लिए हमें यीशु मसीह में अपने मुक्तिदाता के रूप में विश्वास रखना चाहिये तथा अपने जीवन के बारे में परमेश्वर की आश्चर्यजनक योजना को जानना चाहिये ।" यूहन्ना १:१२ हमारे लिए इस बात का वर्णन करता है, "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं ।" प्रेरितों के काम १६:३१ यह स्पष्ट रूप से कहता है, "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पायेगा !" हमारा उद्धार केवल अनुग्रह से, केवल विश्वास के द्वारा, केवल यीशु मसीह में हो सकता है (इफिसियो २:८-९) ।
अगर आप अपने उद्धारकर्ता के रूप में यीशु मसीह में विश्वास करना चाहते हैं तो निम्नलिखित शब्दों को परमेश्वर से कहें । इन शब्दों का कहना आपका उद्धार नहीं कर सकता, परन्तु मसीह में विश्वास कर सकता हूँ । परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैनें आप के विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दंड दिया जिसके योग्य मैं था, जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ, तथा मुक्ति के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए-अनंत जीवन के वरदान के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!
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चार अध्यात्मिक नियम क्या है?
मैं परमेश्वर के साथ ठीक प्रकार से कैसे रह सकता हूँ?
प्रश्न: मैं परमेश्वर के साथ ठीक प्रकार से कैसे रह सकता हूँ?
उत्तर: परमेश्वर के साथ "ठीक" प्रकार से रहने के लिए, हमें पहले यह समझना होगा कि "गलत" क्या है । उत्तर है 'पाप' । "कोई भी अच्छा कार्य करने वाला व्यक्ति नहीं है, एक व्यक्ति भी नहीं" (भजन संहिता १४:३) । हमने ईश्वर के आदेशों के खिलाफ विद्रोह किया है, हम भेड़ो की तरह रास्ता भटक गये हैं। " (यशायाह ५३:६)
बुरी खबर यह है कि पाप का दंड मृत्यु है । "जो प्राणी पाप करे वही मर जायेगा" (यहेजकेल १८:४) । अच्छा समाचार यह है कि हमारे लिए उद्धार लाने के लिए एक प्रेमपूर्ण परमेश्वर ने हमारा पीछा किया है । यीशु ने कहा था कि उसका उद्देश्य "खोए हुओं को ढूँढने तथा उनका उद्धार करना" है (लूका १९:१०), तथा उसने स्पष्ट किया, इन शब्दों के साथ जब क्रूस पर उसने प्राण त्यागे, "पूरा हुआ !" (यूहन्ना १९:३०)
परमेश्वर के साथ ठीक प्रकार के संबंध अपने पापों को स्वीकार करने के साथ ही शुरू होते हैं । अगला चरण परमेश्वर के सम्मुख एक विनम्र खेद प्रकट करना (यशायाह ५७:१५) तथा पाप का परित्याग करने का दृढ़ संकल्प है । "उद्धार के लिए मुँह से कहा जाता है" (रोमियो१०:१०)
यह पश्चाताप विश्वास के साथ होना चाहिये । विशेष रूप से यह विश्वास कि यीशु की बलिदानी मृत्यु तथा चमत्कारपूर्ण पुनरुत्थान उसे हमारा उद्धारकर्ता बनने के योग्य बनाता है । "कि यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पायेगा" (रोमियो १०:९) । कई अन्य अनुच्छेद विश्वास की आवश्यकता की बात करते हैं, जैसे (यूहन्ना २०:२७; प्रेरितों के काम १६:३१; गलतियों २:१६; ३:११; २६; तथा इफिसियों २:८)
परमेश्वर के साथ ठीक प्रकार से रहना आपकी उस प्रतिक्रिया का विषय है जो कि आपके लिए परमेश्वर द्वारा किये गए कार्यों के प्रति होती है । उसने उद्धारकर्ता भेजा, उसने हमारे पाप को समाप्त करने के लिए बलिदान उपलब्ध कराया (यूहन्ना १:२९) तथा वो आपको यह वचन देता है : "और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पायेगा" (प्रेरितों के काम २:२१)।
उड़ाऊ पुत्र का दृष्टान्त (लूका १५:११-३२) पश्चाताप तथा क्षमा का एक सुन्दर उदाहरण है । छोटे पुत्र ने अपने पिता द्वारा भेंट में दी गई संपत्ति को कुकर्मों में उड़ा दी (पद १३) । जब उसने अपने गलत कार्यों को पहचाना, उसने वापस घर लौटने का निर्णय लिया (पद १८) । उसने यह माना कि वह अब पुत्र कहलाने लायक नहीं रहा (पद १९) परन्तु वह गलती पर था । ईश्वर विर्दीणहृदय तथा अन्तरआत्मा में दबे हुए लोगों के सदैव करीब विद्यमान रहते हैं। परमेश्वर अपने वचनों पर रहने के लिए भला है, जिसमें कि क्षमा का वचन भी सम्मिलित है । "यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और शोषितों का उद्धार करता है" (भजन संहिता ३४:१८)
अगर आप परमेश्वर के साथ ठीक रहना चाहते है, इसके लिए एक प्रार्थना है । स्मरण रखें, यह प्रार्थना या कोई अन्य प्रार्थना का कहना आपको उद्धार नहीं दिला सकता । केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थाना तो परमेश्वर में केवल अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिए उद्धार उपलब्ध कराने के लिये उसको धन्यवाद करने के लिए है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दंड उठाया जिसके योग्य मैं था, जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा उद्धार के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिये-अनन्त जीवन के वरदान के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!"
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मैं परमेश्वर के साथ ठीक प्रकार से कैसे रह सकता हूँ?
क्या स्वर्ग के लिए यीशु ही एकमात्र मार्ग है?
प्रश्न: क्या स्वर्ग के लिए यीशु ही एकमात्र मार्ग है?
उत्तर: "मैं मूलतः एक अच्छा व्यक्ति हूँ, इसलिए मैं स्वर्ग जाऊँगा ।" "ठीक है, मैं कुछ बुरे कार्य करता हूँ, परन्तु मैं अच्छे कार्य अधिक करता हूँ, इसलिए मैं स्वर्ग जाऊँगा ।" "परमेश्वर मुझे इसलिए नरक में नहीं भेजेगा क्यूँकि मैं बाइबल के तरीकों से नहीं जीता हूँ । समय बदल गया है !" "केवल वास्तविक बुरे लोग जैसे कि बालकों का उत्पीड़न करने वाले या हत्यारे ही नरक में जाते हैं ।"
अधिकतर लोगों में इस प्रकार के तर्क आम बात है, परन्तु सत्य यह है, कि यह सब झूठे हैं । शैतान, इस संसार का शासक, हमारे दिमागों में यह विचार डालता है । वह, तथा कोई भी जो उसके मार्गों का अनुसरण करता है, परमेश्वर का शत्रु है (१पतरस ५:८) शैतान हमेशा अपने आपको अच्छे रूप के भेष में रखता है (२कुरिन्थियों ११:१४) परन्तु उसका उन सारे दिमागों पर नियंत्रण है जो कि परमेश्वर के नहीं हैं । "शैतान, इस बुरे संसार के ईश्वर ने, उन सभी की बुद्धि को अन्धा कर दिया है जो विश्वास नहीं करते, इसलिये वो सुसमाचार के तेजोमय प्रकाश को नहीं देख सकते जो उन पर चमक रहा है । वह मसीह की महिमा के संदेश को नहीं समझते, जो कि परमेश्वर का प्रतिरूप है "(२ कुरिन्थियों ४:४)" ।
यह विश्वास करना एक झूठ है कि परमेश्वर छोटे पापों की ओर ध्यान नहीं देता; तथा नरक "बुरे लोगों के लिए ही सुरक्षित है । सारे पाप हमें परमेश्वर से पृथक कर देते हैं, यहाँ तक कि एक 'छोटा सा सफेद झूठ' । सबने पाप किया है, तथा कोई भी इतना सक्षम नहीं है जो अपने बलबूते पर ही स्वर्ग जा सके (रोमियो ३:२३) । स्वर्ग जाने का आधार यह नहीं है कि हमारी अच्छाईयाँ हमारी बुराईयों की अपेक्षा भारी है, अगर ऐसा मामला है तो हम सब हार जायेगें । "यदि वह परमेश्वर के अनुग्रह से हुआ है, तो फिर उनके कर्मों से नहीं । क्योंकि ऐसे विषय में, परमेश्वर का आश्चर्यजनक अनुग्रह वैसा नहीं रहेगा जेैसा कि वो वास्तविक रूप में हेै-बिना कोई कीमत चुकाये" (रोमियो ११:१६) । हम स्वर्ग में अपना मार्ग अर्जित करने के लिये कुछ भी अच्छा नहीं कर सकते (तीतुस ३:५)
आप परमेश्वर के राज्य में केवल संकरे द्वार से ही प्रवेश कर सकते हैं । नरक का राजमार्ग चाकल है तथा उसका द्वार चौड़ा है, उन सारे लोगों के लिए जो आसान रास्ता अपनाते हेै" (मत्ती ७:१३) यहाँ तक कि अगर हर एक पाप का जीवन जी रहा है, तथा परमेश्वर में विश्वास रखना लोकप्रिय नहीं है, तो परमेश्वर उसे क्षमा नहीं करेगा । "तुम बाकी के संसार की रीति से रह रहे थे, पाप से भरे हुए, शैतान की आज्ञाओं का पालन करते हुए, जो आकाश के अधिकार का शक्तिशाली राजकुमार है । वो उन लोगों के मनों में कार्य करता है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने से मना कर देते हैं" (इफिसियों २:२) ।
जब परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की, वो निर्दोष थी । हर एक वस्तु अच्छी थी । फिर उसने आदम और हव्वा को बनाया, तथा उन्हें उनकी अपनी मर्जी दी, जिससे की उनके पास परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने या ना करने का विकल्प था । परन्तु आदम और हव्वा, वो पहले मनुष्य जिन्हें परमेश्वर ने बनाया था, परमेश्वर की अवज्ञा करने के लिए शैतान के द्वारा ललचाये गए, तथा उन्होंने पाप किया । इस बात ने उन्हें (तथा हर एक जो उनके बाद आया, जिसमें हम भी सम्मिलित है) परमेश्वर के साथ एक निकट संबंध बनाने की योग्यता से पृथक कर दिया । वो सिद्ध है तथा पाप के मध्य नहीं रह सकता । पापियों के रूप में हम स्वयं के बलबूते पर वहाँ नहीं पहुँच सकते । इसलिये परमेश्वर ने एक मार्ग बनाया जिससे कि हम स्वर्ग में उसके साथ जुड़ें । "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, वह नाश ना हो, परन्तु अनन्त जीवन पायें" (यूहन्ना ३:१६) । "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है" (रोमियो ६:२३) । यीशु इसलिए जन्मा कि वो हमें मार्ग दिखा सके तथा हमारे लिए मृत्यु प्राप्त करें जिससे कि हम ना मारे जायें । अपनी मृत्यु के तीन दिन बाद, वो मरे हुओं में से जी उठा (रोमियो ४:२५) अपने आप को मृत्यु पर विजयी प्रमाणित करते हुए । उसने परमेश्वर तथा मनुष्य के मध्य का अंतर समाप्त किया, जिससे कि हम उसके साथ एक व्यक्तिगत संबंध बना सकें, केवल अगर हम विश्वास करें तो ।
"और अनन्त जीवन यह है, कि तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जाने" (यूहन्ना १७:३) अधिकतर लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, यहाँ तक कि शैतान भी । परन्तु उद्धार पाने के लिए, हमें परमेश्वर की ओर जाना चाहिए, व्यक्तिगत संबंध स्थापित करने चाहिये, अपने पापों से मुड़कर उसका अनुसरण करना चाहिए । जो कुछ भी हमारे पास है तथा जो कुछ भी हम करते हैं, उसके साथ हमें यीशु में भरोसा रखना चाहिए । "जब हम अपने पापों के समर्पण के लिए यीशु मसीह में भरोसा रखते हैं तो हम परमेश्वर की दृष्टि में सही माने जाते हैं । तथा इस प्रकार से हम सब का उद्धार हो सकता है, चाहे हम कोई भी हों या हमने कुछ भी किया हो" (रोमियो ३:२२) बाइबल यह शिक्षा देती है कि मसीह के अतिरिक्त उद्धार पाने का कोई अन्य मार्ग नहीं है । यूहन्ना १४:६ में यीशु कहता है, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता ।"
यीशु ही उद्धार का एकमात्र मार्ग है क्योंकि एक वो ही है जो कि हमारे पाप के जुर्माने की कीमत अदा कर सकता है (रोमियो ६:२३) । कोई अन्य धर्म पाप तथा उसके परिणामों की गहराई या गंभीरता की शिक्षा नहीं देता । कोई अन्य धर्म पाप की अंतहीन कीमत नहीं प्रस्तुत करता जो कि केवल यीशु उपलब्ध करा सकता है कोई अन्य "धार्मिक संस्थापक" ऐसा नहीं हुआ जो परमेश्वर से मनुष्य बना हो (यूहन्ना १:१, १४)-एक मात्र तरीका जिससे की अंतहीन ऋण चुकाया जा सके । यीशु को परमेश्वर होना था, जिससे की वो हमारा ऋण चुका सके । यीशु को मनुष्य होना था जिससे की वो मृत्यु को प्राप्त हो सकें । केवल यीशु मसीह में विश्वास से ही उद्धार उपलब्ध है ! "और किसी दूसरे के द्वारा उद्वार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें" (प्रेरितों के काम ४:१२)
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क्या स्वर्ग के लिए यीशु ही एकमात्र मार्ग है?
मैं यह निश्चित तौर पर कैसे जान सकता हूँ कि जब मैं मरूँगा तो मैं स्वर्ग में जाऊँगा?
प्रश्न: मैं यह निश्चित तौर पर कैसे जान सकता हूँ कि जब मैं मरूँगा तो मैं स्वर्ग में जाऊँगा?
उत्तर: क्या आपको यह निश्चित रूप से पता है कि आपके पास अनन्त जीवन है तथा जब आप मृत्यु को प्राप्त होंगे तो स्वर्ग में जायेंगें? परमेश्वर चाहता है कि आप निश्चित हों, बाइबल कहती है, "मैं ये सारी आपके लिए लिखा है जो ईश्वर की सन्तान पर विश्वास करता है ताकि आप जान सकें कि आपका एक शाश्वत जीवन है। " (१यूहन्ना ५:१३) । मान लें कि आप इसी समय परमेश्वर के समक्ष खड़े हैं, तथा उसने आपसे पूछा "मैं तुम्हें स्वर्ग में क्यों आने दूँ?" तो आप क्या कहेंगे? क्या जवाब दें, आप शायद नहीं जान पायेंगे । जो आपको जानने की आवश्यकता है वो यह है कि परमेश्वर हमसे प्रेम रखता है तथा उसने एक मार्ग उपलब्ध कराया है जिसे हम निश्चित रूप से जानते हैं जहाँ पर हम अनंनता व्यतीत करेंगे । बाइबल उसको इस प्रकार से व्यक्त करती है, "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश ना हो, परन्तु अनन्त जीवन पाये" (यूहन्ना ३:१६)
सबसे पहले हमें उस समस्या को समझाना है जो हमको स्वर्ग से दूर रख रही है । समस्या यह है कि-हमारा पापपूर्ण चरित्र हमको परमेश्वर के साथ संबंध बनाने से दूर रखता है । हम प्राकृतिक रूप तथा विकल्प से पापी है, "इसलिए कि सब ने पाप किया हैं तथा परमेश्वर की महिमा से रहित है" (रोमियो ३:२३)। हम स्वयं अपना उद्धार नहीं कर सकते । "क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है । और ना कर्र्मों के कारण, ऐसा ना हो कि कोई घमण्ड करें" (इफिसियों २:८-९) हम मृत्यु तथा नरक के योग्य हैं । "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है" (रोमियो ६:२३)
परमेश्वर पवित्र तथा न्यायी है तथा उसे पाप को दंड देना चाहिये, फिर भी वो हमसे प्रेम रखता है तथा हमारे पापों के लिए उसने क्षमा उपलब्ध कराई है । यीशु ने कहा, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना १४:६) । यीशु हमारे लिए क्रूस पर मृत्यु को प्राप्त हुआ, "इसलिए कि मसीह ने भी, अर्थात अधर्मियों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुँचायें" (१पतरस ३:१८) । यीशु मरे हुओं में से जी उठा; "वह हमारे अपराधों के लिए पकड़वाया गया, और हमारे धर्मी ठहरने के लिए जिलाया भी गया" (रोमियो ४:२५)
इसलिए, मूल प्रश्न की ओर वापस आएँ- "मैं यह निश्चित तौर पर कैसे जान सकता हूँ कि जब मैं मरूँगा तो मैं स्वर्ग में जाऊँगा? "इसका उत्तर यह है-प्रभु यीशु मसीह में विश्वास रखें, और आप उद्धार पायेंगे (प्रेरितों के काम १६:३१) । "परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर के संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं" (यूहन्ना १:१२) । आप अनन्त जीवन एक मुफ्त उपहार के रूप में प्राप्त कर सकते हैं । "परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन हैं" (रोमियो ६:२३) । आप अभी से ही एक पूरा तथा अर्थपूर्ण जीवन जी सकते हैं । यीशु ने कहा : "मैं इसलिए आया कि वे जीवन पायें और बहुतायत से पायें" (यूहन्ना १०:१०) । आप स्वर्ग में यीशु के साथ अनन्तता व्यतीत कर सकते हैं, क्योंकि उसने वचन दिया था : "और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँ, तो फिर आकार तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना १४:३) ।
अगर आप यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना चाहते हैं तथा परमेश्वर की ओर से क्षमा प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहाँ पर एक प्रार्थना है जो आप कर सकते हैं । यह प्रार्थना या कोई और प्रार्थना का कहना आपका उद्धार नहीं कर सकता है । केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थना तो परमेश्वर में अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिये उद्धार उपलब्ध कराने के लिए उसको धन्यवाद करने के लिए है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दण्ड उठाया जिसके योग्य मैं था जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मँह मोड़ता हूँ तथा उद्धार के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए धन्यवाद अस्तु!
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मैं यह निश्चित तौर पर कैसे जान सकता हूँ कि जब मैं मरूँगा तो मैं स्वर्ग में जाऊँगा?
क्या मरणोपरान्त जीवन है?
प्रश्न: क्या मरणोपरान्त जीवन है?
उत्तर: क्या मरणोपरान्त जीवन है? बाइबल हमें बताती है, "मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है । वह फूल की नाईं खिलता, फिर तोड़ा जाता है; वह छाया की रीति पर ढ़ल जाता, और कहीं ठहरता नहीं … यदि मनुष्य मर जाये तो क्या वह फिर जीवित होगा" (अय्यूब १४:१-२, १४)?
अय्यूब की तरह ही, लगभग हम सभी को इस प्रश्न के द्वारा चुनौती मिली है । मृत्यु के पश्चात यर्थाथ रूप से हमको क्या होता है? क्या हम केवल जीवित होने के लिये समाप्त होते हैं? क्या जीवन एक घूमने वाले दरवाज़े की तरह है जिसमें कि मर जाने तथा व्यक्तिगत महानता प्राप्त करने के लिए पृथ्वी पर फिर वापस आ जाता है? क्या सब एक सी ही जगह पर जाते है? क्या कहीं वास्तव में स्वर्ग तथा नरक है, या केवल यह दिमाग की एक स्थिति है?
बाइबल हमें बताती है कि मृत्यु के पश्चात केवल जीवन ही नहीं है, बल्कि अनन्त जीवन इतना महिमामय है जिसको कि, "आँख ने नहीं देखा, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ी, वे ही हैं जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखने वालों के लिए तैयार की है" (१कुरिन्थियों २:९) यीशु मसीह, शरीर में परमेश्वर, पृथ्वी पर हमें यह अनन्त जीवन का वरदान देने आया । "वह हमारे ही अपराधों के लिए घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतु कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़ें खाने से हम लोग चंगे हो जायें" (यशायाह ५३:५)
यीशु ने वो दण्ड प्राप्त किया जिसके उत्तराधिकारी हम सभी है तथा उसने अपना जीवन बलिदान कर दिया । उसने कब्र में से उठते हुए, आत्मा तथा शरीर में, अपने आपको मृत्यु के ऊपर विजयी प्रमाणित किया । वह पृथ्वी पर चालीस दिनों तक रहा तथा स्वर्ग में अपने अनन्त निवास की ओर प्रस्थान करने से पहले हज़ारों लोगों द्वारा देखा गया । (रोमियो ४:२५) कहता है, "वह हमारे अपराधों के लिए पकड़वाया गया, और हमें धर्म के कसौटी पर ठहराने के लिए जिलाया भी गया ।"
मसीह का पुनरुत्थान एक पूर्णरूप से सिद्धकारी हुई घटना थी । पौलुस प्रेरित ने लोगों को चुनौती दी थी कि वो उसकी मान्यता के लिए प्रत्यक्षदर्शियों से प्रश्न करें, परन्तु कोई भी उसकी सत्यता का सामना करने के योग्य नहीं था । पुनरुत्थान क्रिश्चियन विश्वास की आधार-शिला है; क्योंकि क्रिश्चियन को मरे होने पर भी जिलाया गया, हम भी यह विश्वास कर सकते हैं कि हम भी, पुर्नजीवत किए जायेंगे ।
पौलुस ने कुछ आरंभिक मसीहियों को फटकारा था जो इसपर विश्वास नहीं करते थे : "सो जब मसीह का यह प्रचार किया जाता है कि वह मरों में से जी उठा, तो तुममें से कितने क्योंकर कहते है, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं? यदि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं, तो मसीह भी नहीं जी उठा" (१कुरिन्थियों १५:१२-१३)
क्रिश्चियन ही उन लोगों की महान उपज में पहला था जिनको कि फिर से जीवन के लिए पुर्नजीवित किया जायेगा। शारिरिक मृत्यु एक मनुष्य के द्वारा आई थी, वो आदम था, जिससे कि हम सब संबंधित है । परन्तु वो सब जो यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा परमेश्वर के परिवार में ग्रहण किये गए हैं, उन्हें भी नया जीवन दिया जायेगा (१कुरिन्थियों १५:२०-२२) । जैसे परमेश्वर ने अपनी सामर्थ्य से यीशु को जिलाया, वैसे ही यीशु की वापसी पर हमारे शरीर भी पुर्नजीवित किये जायेगें (१कुरिन्थियों ६:१४)
यद्यपि हम सब अंतत: पुर्नजीवित किये जायेंगे, परन्तु हममें से सब स्वर्ग में एक नहीं जायेंगे । हर एक व्यक्ति को इस जीवन में एक विकल्प होना चाहिये और शाश्वत गंतव्य को निर्धारित करेगा। बाइबल कहती है कि हमारे लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना अवश्यंभावी है (इब्रानियों ९:२७) । धार्मिक व्यक्ति स्वर्ग में अनन्त जीवन में प्रवेश करेगा, परन्तु अविश्वासियों को अनन्त दंड भोगने के लिये नरक में भेजा जायेगा (मत्ती २५:४६)
नरक, स्वर्ग जैसी ही, केवल अस्तित्व की स्थिति ही नहीं है, परन्तु एक यथातथ्य, तथा बहुत वास्तविक जगह है । यह वो जगह है जहाँ अधर्मी, परमेश्वर द्वारा अनन्त रोष का अनुभव करेंगे । वे भावनात्मक, मानसिक तथा शारिरिक यातना झेलेंगे, शर्म, खेद तथा तिरस्कार से जान बूझकर पीड़ित होते हुए ।
नरक का वर्णन एक अथाह गड्ढे के रूप में किया गया है (लूका ८:३१; प्रकाशित वाक्य ९:१) तथा आग और गन्धक की झील, जहाँ के वासियों को रात और दिन, हमेशा-हमेशा उत्पीड़ित किया जायेगा (प्रकाशित वाक्य २०:१०) नरक में, रोना और दांत पीसना होगा, अत्यधिक दुख तथा क्रोध का संकेत करते हुए (मत्ती १३:४२) । वह एक ऐसी जगह है "जहाँ का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती" (मरकुस ९:४८)। परमेश्वर दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इससे कि दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे (यहेजकेल ३३:११) । परन्तु वो हमें समर्पण के लिए बाध्य नहीं करेगा; अगर हम उसको अस्वीकार करते हैं । उसके पास हमको हमारी चाह की वस्तुएं देने के लिए छोटे विकल्प हैं-कि हम उससे अलग रहें ।
पृथ्वी पर जीवन एक परीक्षा है-उस समय के लिए तैयारी जो आने वाला है। विश्वासियों के लिए यह परमेश्वर की तत्कालिक उपस्थिति में अनन्त जीवन है । सो हम कैसे धार्मिक तथा अनन्त जीवन को प्राप्त करने के योग्य बनें । केवल एक ही मार्ग है-परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह में विश्वास तथा भरोसे के द्वारा । यीशु ने कहा, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जायें, तो भी जीयेगा । और जो कोई जीता है और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक नहीं मरेगा …" (यूहन्ना ११:२५-२६)
अनन्त जीवन का मुफ्त उपहार हम सभी को उपलब्ध है, परन्तु वो चाहता है कि हम कुछ सांसारिक आनन्दों से स्वयं से आत्मत्याग करें तथा परमेश्वर के लिए स्वयं को बलिदान करें । "जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र को नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है" (यूहन्ना ३:३६) । मृत्यु के पश्चात हमें अपने पापों का प्रायश्चित करने का अवसर नहीं दिया जायेगा, क्योंकि एक बार जब परमेश्वर को हम आमने-सामने देख लेगें, तो हमारे पास उसपर विश्वास करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जायेगा। वह चाहता है कि हम इस समय ही विश्वास तथा प्रेम में उसके पास आएं । अगर हम यीशु मसीह की मृत्यु को परमेश्वर के विरुद्ध हमारे पापपूर्ण विद्रोह की कीमत के रूप में स्वीकार करते हैं, तो ना केवल हमें पृथ्वी पर एक अर्थपूर्ण जीवन की विश्वस्तता मिलेगी, परन्तु मसीह की उपस्थिति में अनन्त जीवन भी प्राप्त होगा ।
अगर आप यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण करना चाहते हैं । यहाँ पर एक उदाहरण स्वरूप प्रार्थना है । स्मरण रखें, यह प्रार्थना या कोई और प्रार्थना का कहना आपको उद्धार नहीं दिला सकता । केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थना तो परमेश्वर में केवल अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिये उद्धार उपलब्ध कराने के लिये उसको धन्यवाद करने के लिये है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दण्ड उठाया जिसके योग्य मैं था जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा उद्धार के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए-अनन्त जीवन के वरदान के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!"
क्या आपने, जो यहाँ पर पढ़ा है, उसके कारण यीशु के लिए निर्णय लिया है? अगर ऐसा है तो कृपा नीचे स्थित "मैंने आज यीशु को स्वीकार कर लिया है" वाला बटन दबाएँ ।
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क्या मरणोपरान्त जीवन है?
व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में यीशु को स्वीकार करने का क्या अर्थ है?
प्रश्न: व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में यीशु को स्वीकार करने का क्या अर्थ है?
उत्तर: क्या आपने कभी यीशु मसीह को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया है? इससे पहले कि आप उत्तर दें, मुझे प्रश्न को समझाने की अनुमति दें । इस प्रश्न को ठीक तरह से समझने के लिए पहले आपको "यीशु मसीह", "व्यक्तिगत" तथा "उद्धारकर्ता" के बारे में ठीक प्रकार से समझना चाहिये ।
यीशु मसीह कौन है? कई लोग यीशु मसीह को एक अच्छे मनुष्य, महान शिक्षक, या परमेश्वर के भविष्यवक्ता के रूप में स्वीकार करेंगे । यह बातें यीशु के विषय में निश्चित रूप से सत्य है, परन्तु यह इस बात कि परिभाषा नहीं देती कि वास्तविकता में वो है कौन । बाइबल हमें बताती है कि यीशु देह में परमेश्वर है, परमेश्वर जो मनुष्य बना (देखें यूहन्ना १:१,१४) । परमेश्वर पृथ्वी पर हमें शिक्षा देने, चंगा करने, सही करने, क्षमा करने तथा हमारे लिए मरने के लिए आया ! यीशु मसीह परमेश्वर, सृष्टिकर्ता तथा संप्रभु है । क्या आपने इस यीशु को स्वीकार किया है?
उद्धारकर्ता क्या है तथा हमें उद्धारकर्ता की क्यों आवश्यकता है? बाइबल हमें बताती है कि हम सबने पाप किया है, हम सबने बुरे कर्म किए हैं (रोमियो ३:१०-१८) । अपने पाप के परिणामस्वरूप, हम सब परमेश्वर के क्रोध तथा न्याय के पात्र हैं । अपरिमित तथा सनातन परमेश्वर के विरुद्ध पाप करने का एकमात्र उचित दण्ड अंतहीन है (रोमियो ६:२३; प्रकाशित वाक्य २०:११-१५) ! इसलिए हमें उद्धारकर्ता की आवश्यकता है !
यीशु मसीह पृथ्वी पर आया तथा हमारी जगह मृत्यु को प्राप्त हुआ । यीशु की मृत्यु, देहधारी परमेश्वर के रूप में, हमारे पापों की असीमित कीमत थी (२कुरिन्थियों ५:२१) । यीशु हमारे पापों का जुर्माना अदा करने के लिए मृत्यु को प्राप्त हुआ (रोमियो ५:८) । यीशु ने कीमत चुकाई जिससे कि हमें ना चुकानी पड़े । यीशु के पुनरुत्थान ने यह प्रमाणित कर दिया कि उसकी मृत्यु हमारे पापों का जुर्माना अदा करने के लिए पर्याप्त थी । यही कारण है कि यीशु ही एकमात्र उद्धारकर्ता है (यूहन्ना १४:६ प्रेरितों के काम ४:१२) ! क्या आप यीशु में अपने उद्धारकर्ता के रूप में भरोसा कर रहे हैं?
क्या यीशु आपका व्यक्तिगत उद्धारकर्ता है? कई लोग क्रिश्चियन धर्म को गिरजे में जाना, रीति-रिवाजों को पूरा करना तथा कुछ विशेष पापों को ना करने के रूप की दृष्टि से देखते हैं । यह क्रिश्चियन धर्म नहीं है । वास्तविक क्रिश्चियन धर्म यीशु मसीह के साथ व्यक्तिगत संबंधों का होना है । यीशु को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने का अर्थ है उसमें अपने स्वयं के व्यक्तिगत विश्वास तथा भरोसे को रखना । कोई भी कुछ विशेष कार्यों को करने से क्षमा नहीं पा सकता । उद्धार प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग यह है कि आप व्यक्तिगत रूप से यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करें, उसकी मृत्यु को अपने पापों की कीमत के रूप में भरोसा करके, तथा उसके पुनरुत्थान को अनन्त जीवन की अपनी विश्वस्तता मानकर (यूहन्ना ३:१६) । क्या यीशु व्यक्तिगत रूप से आपका उद्धारकर्ता है?
अगर आप उद्धारकर्ता मसीह को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना चाहते हैं, तो परमेश्वर से निम्नलिखित शब्द कहें । स्मरण रखें, यह प्रार्थना या कोई और प्रार्थना का कहना आपका उद्धार नहीं कर सकता है । केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थना तो परमेश्वर में अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिए उद्धार उपलब्ध कराने का एक साधारण तरीका है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आप के विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दंड उठाया जिसके योग्य मैं था, जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा उद्धार के लिए आप में अपना विश्वास रखता हूँ । मैं यीशु को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करता हूँ ! आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए-अनन्त जीवन के वरदान के लिए धन्यवाद अस्तु!"
क्या आपने, जो यहाँ पर पढ़ा है, उसके कारण यीशु के लिए निर्णय लिया है? अगर ऐसा है तो कृपा नीचे स्थित "मैंने आज यीशु को स्वीकार कर लिया है" वाला बटन दबाएँ ।
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व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में यीशु को स्वीकार करने का क्या अर्थ है?
मोक्ष की योजना क्या है?
प्रश्न: मोक्ष की योजना क्या है?
उत्तर: क्या आप भूखे हैं? शारिरिक रूप से भूखे नहीं, परन्तु आपको जीवन में किसी और वस्तु की भूख है? क्या आपमें गहराई तक कोई ऐसी वस्तु है जो कि कभी भी संतुष्ट होती प्रतीत नहीं होती? अगर ऐसा है, यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने कहा, "जीवन की रोटी मैं हूँ : जो मेरे पास आयेगा वह कभी भूखा ना होगा, और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा ना होगा" (यूहन्ना ६:३५) ।
क्या आप भ्रमित हैं ? क्या आप जीवन में कोई मार्ग या उद्देश्य नहीं ढूंढ पाये? क्या ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने बिजली गुल कर दी है तथा आप उसको जलाने के लिए बटन ढूंढ पाने में असर्मथ हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने दावा किया था, "जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में ना चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा" (यूहन्ना ८:१२) ।
क्या आप कभी ऐसा महसूस करते हैं कि आपके प्रति जीवन के द्वार बन्द हो गए हैं? क्या आपने बहुत सारे द्वार खटखटाये हैं, केवल यह जानने के लिए कि उनके पीछे केवल खालीपन तथा अर्थहीनता है? क्या आप एक पूर्णता के जीवन में प्रवेश करने की ओर देख रहे हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने द्घोषणा करी थी, "द्वार में हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा प्रवेश करेगा तो मोक्ष पायेगा, और भीतर-बहर आया-जाया करेगा, और चारा पायेगा" (यूहन्ना १०:९)
क्या अन्य लोग सदा आपको नीचा दिखाते हैं? क्या आपके संबंध उथले और खोखले हैं? क्या ऐसा प्रतीत होता है कि हर एक आपका लाभ उठाने का प्रयास कर रहा है? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने कहा था, "अच्छा चरवाहा मैं हूँ अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिए अपना प्राण देता है --- मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़े मुझे जानती है" (यूहन्ना १०:११, १४) ।
क्या आप आश्चर्य करते हैं कि इस जीवन के पश्चात क्या होता है? क्या आप उन वस्तुओं के लिए अपने जीवन को जीते हुए थक गए हैं, जो केवल सड़ती हैं या जंक़ खाती हैं? क्या आप को जीवन के अर्थ के प्रति का संदेह होता है? क्या आप मरणोपरान्त जीना चाहते हैं? अगर ऐसा है, तो यीशु एक मार्ग है! यीशु ने घोषणा करी थी, "पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तो भी जीएगा । और जो कोई जीवित है और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक नहीं मरेगा" (यूहन्ना ११:२५-२६) ।
मार्ग क्या है? सत्य क्या है? यीशु ने उत्तर दिया, "मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना १४:६) जो भूख आप महसूस करते हैं वो एक आत्मिक भूख है, तथा केवल यीशु के द्वारा ही पूरी की जा सकती है । एकमात्र यीशु ही है जो अंधेरे को समाप्त कर सकता है । यीशु एक संतुष्ट जीवन का फाटक है । यीशु एक मित्र तथा चरवाहा है जिसकी आप तलाश कर रहे थे । यीशु जीवन है-इस संसार में तथा अगले में । यीशु मोक्ष का मार्ग है !
आपकी भूख का कारण, आपको अंधेरे में खो जाने के प्रतीत होने का कारण, आपका जीवन में कोई अर्थ ना पाने का कारण, यह है कि आप परमेश्वर से पृथक हो गए हैं । बाइबल हमें बताती है कि हम सबने पाप किया है, तथा इसलिए हम परमेश्वर से पृथक हो गए हैं (सभोपदेशक ७:२०; रोमियो ३:२३) जो खालीपन आप अपने हृदय में महसूस कर रहे हैं वह परमेश्वर का आपके जीवन में नही होने का कारण है । हमारी रचना परमेश्वर के साथ संबंध रखने के लिए की गई थी । परन्तु अपने पाप के कारण, हम उस संबंध से अलग कर दिये गए । इससे भी बदतर यह है कि हमारा पाप सारी अनन्तता में, इस जीवन तथा अगले में, हमारी परमेश्वर से पृथकता का कारण बनेगा (रोमियो ६:२३; यूहन्ना ३:३६)
इस समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है? यीशु एक मार्ग है ! यीशु ने हमारा पाप अपने ऊपर ले लिया (२कुरिन्थियों ५:२१) । यीशु हमारी जगह मरा (रोमियो ५:८), वो दण्ड लेते हुए जिसके उत्तराधिकारी हम हैं । तीन दिनों पश्चात, यीशु मुर्दों में से जी उठा, पाप तथा मृत्यु के ऊपर अपनी प्रभुता प्रमाणित करते हुए (रोमियो ६:४-५) । उसने ऐसा क्यों किया? यीशु ने स्वयं उसका उत्तर दिया, "इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे" (यूहन्ना १५:१३) यीशु मरा जिससे कि हम जी सकें । अगर हम यीशु में अपना विश्वास रखते हैं- उसकी मृत्यु को अपने पापों की कीमत मानकर-हमारे सारे पाप क्षमा किए तथा धो दिए जाते हैं । तब हम अपनी आत्मिक भूख की संतुष्टि पा सकेंगे । फिर से प्रकाश हो जायेगा । हम पूर्णता के जीवन में प्रवेश करेंगे । हम अपने सच्चे श्रेष्ठ मित्र तथा अच्छे चरवाहे को जानेंगे । हम यह जानेंगे कि मरने के पश्चात भी हमारे पास जीवन होगा-यीशु के साथ अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में एक पुर्नजीवित जीवन !
"क्योंकि परमेश्वर ने जगत में ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश नहीं हो, परन्तु अनन्त जीवन पायें" (यूहन्ना ३:१६) ।
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मोक्ष की योजना क्या है?
पापी की प्रार्थना क्या है?
प्रश्न: पापी की प्रार्थना क्या है?
उत्तर: पापी की प्रार्थना एक प्रार्थना है जो एक व्यक्ति परमेश्वर से करता है जब वो यह समझ जाता है कि वो एक पापी है तथा उसे एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है । केवल पापी की प्रार्थना कहना स्वयं में कुछ प्राप्त नहीं कर सकता । पापी की प्रार्थना केवल तभी प्रभावी हो सकती है जब वो निष्कपट भाव से यह वर्णन करती है कि व्यक्ति क्या जानता है, समझता है, तथा अपनी अधर्मता के विषय में मानता है तथा उसे उद्धार की आवश्यकता है ।
पापी की प्रार्थना का प्रथम पक्ष यह समझना है कि हम सब पापी है । (रोमियो ३:१०) दावा करता है, "जैसा लिखा है, कि कोई धार्मिक नहीं, एक भी नहीं । बाइबल यह स्पष्ट करती है कि हम सबने पाप किया है । हम सब पापी है तथा हमें परमेश्वर की ओर से दया तथा क्षमा की आवश्यकता है (तीतुस ३:५-७) । अपने पाप के कारण, हम अनन्त दण्ड के योग्य है (मत्ती २५:४६) । पापी की प्रार्थना न्याय की जगह अनुग्रह की याचना है । यह क्रोध की जगह दया का निवेदन है ।
पाप की प्रार्थना का द्वितीय पक्ष यह जानना है कि परमेश्वर ने हमारी पापपूर्ण तथा खोई हुई स्थिति के उपचार के लिए क्या किया है । परमेश्वर ने देह धारण कर यीशु मसीह के व्यक्तित्व में (यूहन्ना १:१;१४) मनुष्य का रूप धारण किया। यीशु ने परमेश्वर के बारे में हमें सत्य की शिक्षा दी तथा पूर्ण रूप से धर्मी तथा पाप रहित जीवन व्यतीत किया (यूहन्ना ८:४६; २कुरिन्थियों ५:२१) । फिर यीशु हमारी जगह क्रूस पर मरा, वो दंड उठाते हुए जिसके उत्तराधिकारी हम हैं (रोमियो ५:८) । पाप, मृत्यु तथा नरक के ऊपर विजय को प्रमाणित करते हुए यीशु मुर्दों में से जी उठा (कुलुस्सियों २:१५; १कुरिन्थियों अध्याय १५) । इस सब के कारण हम अपने सारे पापों की क्षमा प्राप्त कर सकते है तथा स्वर्ग में एक अनन्त निवास का आश्वासन ले सकते हैं-अगर हम केवल अपना विश्वास यीशु मसीह में रखते हैं । हमको केवल यह करना है कि हम विश्वास करें कि वो हमारी जगह मरा तथा मुर्दों में जी उठा (रोमियो १०:९-१०) । हम केवल अपना विश्वास यीशु मसीह में रखते हैं । हम को केवल यह करना है कि हम विश्वास करें कि वह हमारी जगह मरा तथा मुर्दों में से जी उठा (रोमियो १०:९-१०) हम केवल अनुग्रह से, केवल विश्वास द्वारा, केवल यीशु मसीह में उद्धार प्राप्त कर सकते हैं । (इफिसियों २:८) घोषणा करता है, "क्योंकि विश्वास द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है ।
पापी की प्रार्थना को कहना परमेश्वर से यह कहने का एक साधारण तरीका है कि आप यीशु मसीह पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में भरोसा कर रहे हैं । कहीं पर कोई "चमत्कारिक" शब्द नहीं है जिनका परिणाम उद्धार है । केवल यीशु की मृत्यु तथा पुर्नरुत्थान में विश्वास ही हमको उद्धार दिला सकता है । अगर आप यह समझते हैं कि आप एक पापी है तथा आपको यीशु मसीह के द्वारा उद्धार की आवश्यकता है, तो यहाँ पर एक पापी की प्रार्थना है जो आप परमेश्वर से कर सकते हैं : "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैं एक पापी हूँ । मैं जानता हूँ कि मैं अपने पाप के परिणाम भोगने का पात्र हूँ । फिर भी, मैं अपने उद्धारकर्ता के रूप में यीशु मसीह पर भरोसा रखता हूँ । मैं विश्वास करता हूँ कि उसकी मृत्यु तथा पुर्नरुत्थान मेरी क्षमा उपलब्ध कराने के लिए था । मैं यीशु, तथा केवल यीशु में अपने व्यक्तिगत प्रभु तथा उद्धारकर्ता के रूप में मानता हूँ । आपको धन्यवाद हे प्रभु, मेरा उद्धार करने तथा मुझे क्षमा करने के लिए अस्तु!
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पापी की प्रार्थना क्या है?
मेरे लिये सही धर्म क्या है?
प्रश्न: मेरे लिये सही धर्म क्या है?
उत्तर: फास्ट फूड के रेस्त्रां बिल्कुल हमारी पसन्द का भोजन देने के लिए हमें लुभाते हैं । कुछ कॉफी की दुकानें कॉफी के सौ से ऊपर स्वाद तथा भिन्नताऐं होने की शेखी हाँकती है । यहाँ तक की कारें तथा मकान खरीदते समय, हम अपनी इच्छा के विकल्पों तथा विशेषताओं के अनुरूप देख सकते हैं । अब हम केवल चॉक्लेट, वनीला या स्रातथबेरी के संसार में नहीं रहते हैं । चयन सर्वोपरी है! आप अपनी स्वयं की व्यक्तिगत रूचियों तथा आवयश्कताओं के अनुसार अपनी जरूरत की वस्तुऐं देख सकते हैं ।
तो एक ऐसे धर्म के बारे में क्या विचार जो आपके लिए बिल्कुल सही है? एक ऐसे धर्म के बारे में क्या विचार है जो कि दोषभावना रहित है, जो माँगे नहीं करे, तथा अनेक कष्टकारक निषेधाज्ञाओं से भारग्रस्त ना हों? वो वहाँ है, जैसा कि मैंने वर्णन किया है, परन्तु क्या धर्म क्या कोई ऐसी वस्तु है जो कि अपनी मनपसन्द आईस्क्रीम के स्वाद की तरह चुना जा सकता है?
हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिये बहुत सारी ध्वनियाँ स्पर्धा में रहती है, तो फिर उनसे ऊपर फिर कोई यीशु के नाम पर क्यों न विचार करें, मान लें मोहम्मद या कन्फयूशियस, बुद्ध, या चार्रल्स ताज़े रसल, या जोसफ स्मिथ? आखिरकार क्या सभी मार्ग स्वर्ग की तरफ नहीं जाते हैं? क्या सभी धर्म मूलभूत एक से नहीं है? सत्य ये है कि सब धर्म स्वर्ग की ओर नहीं ले जाते हैं जैसे सारी सड़के इन्डिया की ओर नहीं जाती ।
केवल यीशु ही परमेश्वर के अधिकार के साथ बात करता है क्योंकि केवल यीशु ने मृत्यु पर विजय पाई । मोहम्मद कन्फयूशियस, या अन्य आज तक अपनी कब्रों में दफन है, परन्तु यीशु, अपने स्वयं की शक्ति से, क्रूर रोमी क्रूस पर मरने के तीन दिन पश्चात कब्र से निकल गया । कोई भी जिसके पास मृत्यु पर अधिकार हो हमारा ध्यान आकर्षित करने के योग्य है । कोई भी जिसके पास मृत्यु पर अधिकार हो सुनने के लिये योग्य है ।
यीशु के पुररुत्थान के समर्थन में जो गवाही है वो अभिभूत करने वाली है । पहली, जीवित हो उठे मसीह के पाँच सौ से भी अधिक प्रत्यक्षदर्शी थे ! यह बहुत अधिक प्रत्यक्षदर्शी होते हैं । पाँच सौ आवाज़ों को अन्देखा नहीं किया जा सकता । यहाँ पर खाली पड़ी हुई कब्र का भी मामला है; यीशु के शत्रु उसकी मृत सड़ी हुई, लोथ को पेश करके पुनरुत्थान की सारी बातों पर विराम लगा सकते थे, परन्तु वहाँ पर प्रस्तुत करने के लिए कोई लोथ थी ही नहीं ! कब्र खाली थी ! क्या उनके शिष्य उसकी लोथ को चुरा सकते थे? बिल्कुल नहीं । ऐसी संभावना की रोक-थाम के लिए, यीशु की कब्र पर हथियार बंद सैनिकों का ज़बरदस्त पहरा था । इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उसके निकटतम अनुयायी उसके पकड़े जाने तथा क्रूस पर लटकाये जाने से डर के मारे भाग गए थे, यह बात बिल्कुल असंभव है कि डरे हुए मछुआरों का यह साधारण सा समूह, प्रशिक्षित पेशेवर सैनिकों से लोहा लेते थे। सरल सत्य यह है कि यीशु के पुनरुत्थान का वर्णन नहीं किया जा सकता !
फिर, जिसके पास भी मृत्यु पर अधिकार होगा वो सुनने के योग्य होगा । यीशु ने मृत्यु पर अपने अधिकार को प्रमाणित किया, इसलिए, हमें सुनने की आवश्यकता है कि वे क्या कहता है । यीशु उद्धार का एकमात्र मार्ग होने का दावा करता है (यूहन्ना १४:६)। वह एक मार्ग नहीं है, वह कई मार्गों में से एक मार्ग नहीं है, परन्तु यीशु ही मार्ग है ।
और यह वही यीशु कहता है, "हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा" (मत्ती ११:२८) । यह एक कठोर संसार है तथा जीवन कठिन है । हम में से अधिकतर अच्छे खासे रक्तरंजित, रगड़े हुए तथा संघर्षरत हैं । मानते हैं? इसलिए आपको क्या चाहिये? पुनरुद्धार या केवल धर्म? एक जीता-जागता उद्धारकर्ता या मरे हुए कई 'भविष्यवक्ताओं' (पैगंबरों) में से एक? एक अर्थपूर्ण संबंध या निरर्थक रीति-रिवाज? यीशु एक विकल्प नहीं है-यीशु ही विकल्प है !
यीशु एक सही "धर्म" है अगर आप क्षमा चाहते हैं (प्रेरितों के काम १०:४३) । यीशु एक सही "धर्म" है अगर आप परमेश्वर के साथ अर्थपूर्ण संबंध चाहते हैं (यूहन्ना १०:१०) । यीशु एक सही "धर्म" है अगर आप स्वर्ग में अनन्त निवास चाहते हैं (यूहन्ना ३:१६) । अपने उद्धारकर्ता के रूप में यीशु मसीह में अपना विश्वास रखें-आपको खेद नहीं होगा ! अपने पापों की क्षमा के लिए उस में भरोसा रखें-आप निराश नहीं होंगे ।
अगर आप परमेश्वर के साथ एक सही संबंध रखना चाहते हैं, यहाँ पर एक प्रार्थना है । स्मरण रखें, यह प्रार्थना या कोई और प्रार्थना का कहना आपको उद्धार नहीं दिला सकता । केवल यीशु में विश्वास ही है जो आपको पाप से बचा सकता है । यह प्रार्थना तो केवल परमेश्वर में अपना विश्वास व्यक्त करने तथा आपके लिए मुक्ति उपलब्ध कराने के लिए है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है, तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने दंड उठाया जिसके योग्य मैं था जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा उद्धार के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए-अनन्त जीवन के वरदान के लिए धन्यवाद् अस्तु!
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मेरे लिये सही धर्म क्या है?
रोमियो मार्ग उद्धार क्या है?
प्रश्न: रोमियो मार्ग उद्धार क्या है?
उत्तर: रोमियो के मार्ग से उद्धार एक तरीका है जिसमें उद्धार के सुसमाचार को रोमियो की बाइबल पुस्तक में से अनुच्छेदों का उपयोग करके बाँटा जाता है । यह एक सरल फिर भी शक्तिशाली तरीका है यह समझाने के लिए कि हमें उद्धार की क्यों आवश्यकता है, कैसे परमेश्वर ने उद्धार उपलब्ध कराया, कैसे हम उद्धार प्राप्त कर सकते हैं तथा उद्धार के क्या परिणाम हैं ।
रोमियो के मार्ग से उद्धार का पहला पद है (रोमियो ३:२३), "इसलिए कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं । "हम सबने पाप किया है। हम सबने ऐसे कार्य किये हैं जिससे परमेश्वर अप्रसन्न होता है। ऐसा कोई भी नहीं है जो निर्दोष हो । (रोमियो ३:१०-१८) एक विस्तृत चित्रण देता है कि हमारे जीवन में पाप किस प्रकार दिखता है । रोमियो के मार्ग से उद्धार का दूसरा लेख, (रोमियो ६:२३), हमें पाप के परिणामों के विषय में शिक्षा देता है, "क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है ।" अपने पापों के लिए जो दण्ड हमने अर्जित किया है वो मृत्यु है । केवल शारिरिक मृत्यु ही नहीं, परन्तु शाश्वत मृत्यु है !
रोमियों के मार्ग से उद्धार का तीसरा पद वहाँ से आरंभ होता है जहाँ पर (रोमिया ६:२३) समाप्त होता है, "परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु यीशु मसीह में अनन्त जीवन है ।" (रोमियो ५:८) द्घोषणा करता है, "परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रकट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा ।" यीशु मसीह हमारे लिये मरा ! यीशु की मृत्यु ने हमारे पापों की कीमत चुकाई । यीशु का पुर्नरुत्थान यह प्रमाणित करता है कि परमेश्वर ने यीशु की मृत्यु को हमारे पापों की कीमत के रूप में स्वीकार किया ।
रोमियों के मार्ग से उद्धार का चौथा पड़ाव (रोमियो १०:९) है, "कि यदि तू यीशु को अपने मुँह से प्रभु जानकर अंगीकार करें और अपने मन से विश्वास करें, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पायेगा ।" हमारे हित में यीशु की मृत्यु के कारण, जो सब कुछ हमको करना है वो है उस पर विश्वास करना, हमारे पापों के कारण उसकी मृत्यु पर भरोसा करना-तथा हम उद्धार पायेंगे ! (रोमियों १०:१३) इसे फिर से कहता है, "क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पायेगा।" यीशु हमारे पापों के दंड की कीमत चुकाने के लिए मरा तथा हमको अनन्त मृत्यु से बचाने के लिये। उद्धार, पापों की क्षमा, हर किसी को उपलब्ध है जो यीशु मसीह में अपने प्रभु तथा उद्धारकर्ता के रूप में भरोसा रखेगा ।
रोमियो के मार्ग से उद्धार का निर्णायक पहलू उद्धार के परिणाम हैं ।(रोमियों ५:१) में यह आश्चर्यजनक संदेश है, "सो जब हम विश्वास से धार्मिक ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें ।" (रोमियो ८:१) हमें शिक्षा देता है, "सो अब जो मसीह यीशु में है, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं ।" हमारे हित में यीशु की मृत्यु के कारण, हमें हमारे पापों के लिए कभी भी दोषी नहीं ठहराया जायेगा । अन्त में हमारे पास परमेश्वर का पूर्वकथन (रोमियो ८:३८-३९) है, "क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि ना मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊँचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह में है, अलग कर सकेगी ।"
क्या आप रोमियो के मार्ग से उद्धार का अनुसरण करना चाहेंगे । अगर ऐसा है, तो यहाँ पर एक सरल प्रार्थना है जो आप परमेश्वर से कर सकते हैं । इस प्रार्थना को करना परमेश्वर को यह बताने का तरीका है कि आप अपने उद्धार के लिए यीशु मसीह पर भरोसा कर रहे हैं । शब्द स्वयं आपका उद्धार नहीं कर सकते । केवल यीशु पर विश्वास उद्धार दिला सकता है । "परमेश्वर, मैं जानता हूँ कि मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है तथा मैं दंडित होने का उत्तराधिकारी हूँ । परन्तु यीशु मसीह ने वो दंड उठाया जिसके योग्य मैं था, जिससे कि उसमें विश्वास करके मैं क्षमा किया जा सकूँ । मैं अपने पापों से मुँह मोड़ता हूँ तथा मुक्ति के लिए आपमें अपना विश्वास रखता हूँ । आपके आश्चर्यजनक अनुग्रह तथा क्षमा के लिए अनन्त जीवन के वरदान के लिए आपका धन्यवाद अस्तु!"
क्या आपने, जो यहाँ पर पढ़ा है, उसके कारण यीशु के लिए निर्णय लिया है? अगर ऐसा है तो कृपा नीचे स्थित "मैंने आज यीशु को स्वीकार कर लिया है" वाला बटन दबाएँ ।
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रोमियो मार्ग उद्धार क्या है?
मैंने अभी ही अपना विश्वास यीशु में रखा है … अब क्या?
मैंने अभी ही अपना विश्वास यीशु में रखा है … अब क्या?
बधाई! आपने जीवन बदलने का निर्णय लिया है! शायद आप पूछ रहे हैं, "अब क्या? परमेश्वर के साथ मैं अपनी यात्रा कैसे आरम्भ करूँ? नीचे दिए गए पाँच चरणों में आपको बाइबल से निर्देश देंगे । जब आपको अपनी यात्रा में कोई समस्या है, कृपया इसे ध्यान में रखें ।
1 सुनिश्चित करें कि आप मुक्ति को समझते हैं ।
१यूहन्ना ५:१३ हम बताता है, "मैंने तुम्हे, जो परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास करते है, इसलिए लिखा है, कि तुम जानो कि अनन्त जीवन तुम्हारा हैं ।" परमेश्वर चाहता है कि हम मुक्ति का अर्थ समझें । परमेश्वर हमसे चाहता है कि हमारे में उस निश्चितता का आत्मविश्वास हो कि हम मुक्त किये गए हैं । संक्षेप में, आइये हम मुक्ति के मुख्य बिंदुओं की ओर चलें :
(क) इसलिए कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं । (रोमियो ३:२३)
(ख) अपने पाप के कारण, हम परमेश्वर से अनन्त पृथकता से दंडित होने के योग्य हैं । (रोमियो ६:२३)
(ग) हमारे पापों का दण्ड चुकाने के लिये यीशु सलीब पर लटका कर मार दिया गया (रोमियो ५:८, २कुरिन्थयों ५:२१) । यीशु हमारी जगह मरा, उस दंड को लेते हुए जिसके अधिकारी हम थे । उसके पुर्नरुत्थान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि यीशु की मृत्यु हमारे पापों का ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त थी ।
(द्घ) परमेश्वर उन सबको क्षमा तथा मुक्ति प्रदान करता है जो अपना विश्वास यीशु में रखते हैं-यह विश्वास रखते हुए कि उसकी मृत्यु हमारे पापों का ऋण चुकाने के लिए थी (यूहन्ना ३:१६, रोमियो ५:१, रोमियो ८:१)
यह मुक्ति का संदेश है ! अगर आपने यीशु मसीह पर अपने मुक्तिदाता के रूप में विश्वास किया है, तो आप मुक्त हो चुके हैं ! आपके सारे पाप क्षमा किए गए हैं तथा परमेश्वर आपको कभी भी नहीं छोड़ने या परित्याग करने का वचन देता है (रोमियो ८:३८-३९, मत्ती २८:२०) । स्मरण रखें, यीशु मसीह में आपकी मुक्ति सुरक्षित है (यूहन्ना १०:२८-२९) । अगर आप अपने मुक्तिदाता के रूप में केवल यीशु पर भरोसा रखते हैं, तो आप इस बात के लिए विश्वस्त हो सकते हैं कि स्वर्ग में आप परमेश्वर के साथ अनन्तता में रहेंगें !
2 एक अच्छी कलीसिया (चर्च) खोजे जो पवित्रशास्त्र की शिक्षा दें ।
चर्च को एक भवन के रूप में ना देखें । कलीसिया ही चर्च है । यह बहुत महत्वपूर्ण है कि यीशु में विश्वासी लोग एक दूसरे के साथ मैत्री रखें । यह चर्च के मूलभूत उद्वेश्यों में से एक है । अब, जबकि आपने यीशु मसीह में अपना विश्वास बना लिया है, हम आपको प्रबलता से प्रोत्साहन देते हैं कि आप अपने क्षेत्र में एक पवित्र शास्त्र पर विश्वास रखने वाले चर्च (कलीसिया) को खोजे तथा उसके पादरी से बात करें । यीशु मसीह में अपने नए विश्वास के बारे में उन्हें अवगत कराऐं । चर्च का दूसरा उद्देश्य बाइबल (पवित्रशास्त्र) की शिक्षा देना है ।
परमेश्वर के निर्देशों को अपने जीवन पर अवतरित करना आप सीख सकते हैं । पवित्रशास्त्र को समझना एक सफल तथा शक्तिशाली मसीही जीवन जीने की कुँजी है । २ तिमुथियुस ३:१६-१७ कहता है, " हर एक पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है । ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाय ।"
चर्च का तीसरा उद्देश्य आराधना है । परमेश्वर के सभी कार्यों का धन्यवाद करना अराधना है ! परमेश्वर ने हमें बचाया है । परमेश्वर हमसे प्रेम करता है। परमेश्वर हमारे लिए वस्तुएँ उपलब्ध कराता है । परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करता है तथा हमें निर्देश देता है । हम उसका धन्यवाद क्यों नहीं करें? परमेश्वर पवित्र, सदाचारी, प्रभु और प्रेममय, दयालु तथा अनुग्रह से परिपूर्ण हैं । प्रकाशितवाक्य ४:११ यह घोषणा करते हैं, "हे हमारे प्रभु और परमेश्वर, तू ही महिमा है, और सामर्थ्य के योग्य है, क्योंकि तू ही ने सारी वस्तुओं को सृजित किया और वे तेरी ही इच्छा से थी, और सृजित की गई ।
3 परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रतिदिन समय निकालें ।
प्रतिदिन परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित करना हमारे लिए अति-महत्वपूर्ण है । कुछ व्यक्ति इसको "मौन समय कहते हैं । अन्य इसे "भक्ति" कहते हैं, क्योंकि यह वो समय होता है जब हम अपने आपको परमेश्वर के प्रति समर्पित करते हैं । कुछ लोग प्रातःकाल समय निर्धारित करते हैं, जबकि कुछ लोग सायंकाल को वरीयता देते हैं ।
इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि आप इस समय को क्या कहते हैं तथा आप इसे कब करते हैं । जो महत्वपूर्ण बात है वो यह है कि आप नियमित रूप से परमेश्वर के साथ समय व्यतीत करते हैं । परमेश्वर के साथ हमारा समय कौन से कार्य बनाते हैं?
(क) प्रार्थना । केवल सहजता से परमेश्वर से बात करना प्रार्थना है । अपनी चिंताओं तथा समस्याओं के विषय में परमेश्वर से बात करें । परमेश्वर से अपने आपको ज्ञान तथा मार्गदर्शन देने के लिए कहें । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परमेश्वर से कहें । परमेश्वर को बतायें कि आप उससे कितना प्रेम करते हैं, तथा जो कुछ वो आपके लिये करता है उसे आप कितना सराहते हैं । इन्हीं सब विषयों को प्रार्थना कहते हैं ।
(ख) पवित्रशास्त्र । (बाइबल) का अध्ययन । चर्च में, सनडे स्कूल या बाइबल की कक्षाओं में बाइबल की शिक्षा लेने के अतिरिक्त भी आपको स्वयं के लिये भी बाइबल का अध्ययन करने की आवश्यकता है । एक सफल मसीही जीवन जीने के लिये बाइबल में वह सारी सामग्री हैं जिनको आपको जानने की आवश्यकता है । वह हमें परमेश्वर की ओर से मार्गदर्शन करती है कि किस प्रकार सही निर्णय लें, परमेश्वर की इच्छा को कैसे जानें, अन्यों की किस प्रकार देख-भाल करें तथा किस प्रकार आत्मिक विकास करें । बाइबल हमारे लिए परमेश्वर का वचन है । बाइबल वस्तुतः परमेश्वर की ओर से निर्देशों की नियमावली है कि कैसे हम अपने जीवन को जीयें जिस से कि वह प्रसन्न हों तथा हम सन्तुष्टि पायें ।
4 उन लोगों से संबंध विकसित करें जो आत्मिक रूप से आपकी सहायता कर
सकें १कुरन्थियों १५:३३ हमें बताता है, "धोखा ना खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है ।" बाइबल इन चेतावनियों से भरी पड़ी है कि बुरे लोगों का प्रभाव हमारे ऊपर कैसे पड़ सकता है । पापपूर्ण गतिविधियों से सम्बद्ध व्यक्तियों के साथ समय व्यतीत करना हमारे लिए भी उन गतिविधियों के प्रति प्रलोभन का कारण बनता है । हम जिनके आस-पास हैं उनका चरित्र हमारे ऊपर भी छाप छोड़ देता है । इसलिये ही यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने आपको ऐसे लोगों से घिरा रख जो प्रभु से प्रेम करते हों तथा उसके प्रति समर्पित हों ।
एक या दो मित्रों को खोजने की कोशिश करें, कदाचित अपनी कलीसिया (चर्च) में से ही, जो कि आपकी सहायता करें तथा आपको प्रोत्साहन दें (इब्रानियों ३:१३; १०:२४) । अपने मित्रों से कहें कि वो आपके खाली समय, आपके कार्यकलापों तथा परमेश्वर के साथ आपकी चाल के संबंध में अपको जवाबदेही रखें । उनसे पूछें कि क्या आप भी उनके लिए वैसा ही कर सकते हैं । इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आपको अपने उन सारे मित्रों को छोड़ना पडेग़ा जो यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में नहीं जानते हैं । उनके मित्र बनें रहें तथा उनसे प्रेम रखें । केवल साधारण तरह से उन्हें यह बतायें कि यीशु ने आपका जीवन बदल दिया है तथा अब आप वो सब कार्य नहीं कर सकते जो पहले करते थे । परमेश्वर से कहें कि वो आपको अवसर उपलब्ध करें कि आप यीशु को अपने मित्रों के साथ बाँट सकें ।
5 बर्पातस्मा लें ।
कई लोगा की बर्पातस्में के बारे में गलतफहमी है । 'बपतिस्में' शब्द का अर्थ है पानी में डुबकी लगाना (दीक्षा स्नान करना) । यीशु में अपने नए विश्वास तथा उसका अनुसरण करने की आपकी प्रतिबद्धता को सार्वजनिक तौर पर द्घोषित करने का यह एक बाइबिली तरीका है । पानी में डुबकी लगाने की क्रिया यह दर्शाती है कि हम यीशु के साथ गाड़े गए हैं । पानी में से बाहर आने की क्रिया यीशु के पुनरुत्थान का चित्रण है । बर्पातस्मा लेना अपने आपको यीशु की मृत्यु, गाड़े जाने तथा पुनरुत्थान से जोड़ना है (रोमियो ६:३-४)
बपतिस्मा वो नहीं है जो आपको मुक्ति दे । बर्पातस्मा आपके पापों को धोता नहीं है । बपतिस्मा तो केवल आज्ञाकारिता का एक चरण है, मुक्ति के लिए केवल मसीह में आपके विश्वास की एक सार्वजनिक घोषणा है । बपतिस्मा इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकिकि यह आज्ञाकारिता का एक चरण है-यीशु पर विश्वास तथा उसके प्रति आपकी प्रतिबद्धता की सार्वजनिक घोषणा । अगर आप बर्पातस्मा लेने के लिये तैयार हैं तो आपको पुरोहित (पादरी) से बात करनी चाहिए ।
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मैंने अभी ही अपना विश्वास यीशु में रखा है … अब क्या?